Friday, September 7, 2018

भारत और अमरीका के लिए 2+2 क्यों अहम है?

उनका कहना है कि समलैंगिक संबंधों से जुड़े अभी बहुत से ऐसे मामले हैं जिन पर आने वाले दिनों में नए सिरे से सोचना होगा. हालांकि इस फ़ैसले से उन लोगों को ज़रूर राहत मिलेगी जिन पर समलैंगिक सबंधों के आरोप में मामले चल रहे हैं.
आरिफ़ जाफ़र भी इस बात से खुश हैं कि कोर्ट ने उन्हें वही अधिकार देने की बात कही जो एक आम नागरिक के हैं, लेकिन वो ये भी मानते हैं कि अभी बहुत से मुद्दे हैं जिनमें आगे बढ़ना होगा.
वो कहते हैं "हमें ये सुनिश्चित करने की ज़रूरत है कि हमारी हिस्सेदारी समाज के हर तबक़े में हो. पिछले इतने सालों से जिस तरह इस समुदाय को दबा कर रखा गया था वो अब ख़त्म होना चाहिए. समाज को इस सोच से उबरने की ज़रूरत है."
लॉ कमीशन ऑफ़ इंडिया में सलाहकार सौम्या सक्सेना भी यही मानती हैं. सौम्या का कहना है कि क़ानून ने भले अपना फ़ैसला सुना दिया हो, लेकिन इसे अभी सामाजिक स्तर पर आना बाकी है. हालांकि वो ये ज़रूर मानती हैं कि ये पहला क़दम है और इसका स्वागत किया जाना चाहिए.
पांच जजों की संवैधानिक पीठ में शामिल जस्टिस नरीमन ने कहा ये कोई मानसिक बीमारी नहीं है. केन्द्र सरकार सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले को ठीक से समझाए ताकि एलजीबीटी समुदाय को कलंकित न समझा जाए.
भारत और अमरीका गुरुवार से द्विपक्षीय शिखर सम्मेलन 2+2 की शुरुआत करने जा रहे हैं.
अमरीकी विदेश मंत्री माइक पोम्पियो और रक्षा मंत्री जेम्स मैटिस अपने भारतीय समकक्षों विदेश मंत्री सुषमा स्वराज और रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण के साथ अपनी पहली 2+2 वार्ता में हिस्सा लेंगे.
यह वार्ता दोनों देशों के बीच उच्च स्तर का भरोसा कायम करने के लिए है.
टू प्लस टू मैकेनिज़्म अमरीकी डिप्लोमेसी का ख़ास कॉन्सेप्ट है. इसमें अमरीका और सहयोगी देश के विदेश और रक्षा मंत्री बातचीत करते हैं.
दो देशों के बीच मुख्य रणनीतिक संबंध विदेश और रक्षा मंत्रालय ही देखते हैं. ऐसे में इन मंत्रियों के आपस में मिलने से कई महत्वपूर्ण निर्णय होते हैं.मरीका के विदेश मंत्री माइक पोम्पियो पाकिस्तान से होते हुए भारत आए हैं. हाल ही में अमरीका ने पाकिस्तान को दी जाने वाली सैन्य मदद को रोक दिया था.
इसलिए भारत और अमरीका के रिश्तों को इस परिप्रेक्ष्य में भी देखा जा रहा है.
पहले समझा जाता था कि भारत और अमरीका के संबंधों के प्रति पाकिस्तान का रुख नकारात्मक है. ये कहा जाता था कि अमरीका भारत से पाकिस्तान से रिश्ते प्रगाढ़ करने की बात करता था. लेकिन अब अमरीका का ये रवैया बदल रहा है.
अमरीका की विदेश नीति में भारत का रोल एक रणनीतिक साझेदार के रूप में है. वहीं पाकिस्तान का रोल एक ऐसे देश के रूप में है जिसके साथ चरमपंथ और अफ़ग़ानिस्तान जैसी कुछ जटिल समस्याएं हैं, जिससे जूझना पड़ रहा है.
पाकिस्तान और भारत के संबंधों पर पाकिस्तान का जो रवैया रहा है उसे लेकर और दूसरे मामलों पर ट्रंप प्रशासन हमेशा से ही सख्त रहा है.
इसके अलावा उसकी विदेश नीति में भी बदलाव देखने को मिला है. पहले कहा जाता था कि अमरीका पाकिस्तान से सख्त बाते करता है, लेकिन ज़मीनी तौर पर कुछ नहीं कर पाता. अब उसका ये रुख बदला है.
भारत के नीति निर्माता सुनना चाहेंगे कि माइक पोम्पियो और अमरीका ने पाकिस्तान की नई सरकार को क्या संदेश दिया और पाकिस्तान की नई सरकार अपनी विदेश नीति, चरमपंथ, अफ़ग़ानिस्तान के मुद्दों और भारत के बारे में क्या कह रही है.
इस वक्त भारत और अमरीका के बीच रिश्ते काफी गहरे हैं, इसलिए चर्चा करने के लिए मुद्दों की कमी नहीं है.
दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय मुद्दों पर बातचीत होगी, जिसमें भारत की विदेश नीति से जुड़े मामले, रूस और ईरान के साथ भारत के रिश्ते और उनपर अमरीका की ओर से लगाए गए प्रतिबंधों पर बात होगी.
वहीं कारोबारी, हिंद व प्रशांत महासागरीय क्षेत्र की सुरक्षा, सामरिक व रणनीतिक सहयोग पर चर्चा होगी.
दोनों देश ये समझ रहे हैं कि विदेश और रक्षा के मुद्दों को अलग करके नहीं देखा जा सकता. बल्कि दोनों पर साथ ही बात करनी होगी.ता के दौरान कोमकासा समझौते पर हस्ताक्षर होने की उम्मीद है. कोमकासा यानी 'कम्यूनिकेशन्स कंपैटबिलटी एंड सिक्युरिटी अग्रीमंट'.
इस समझौते के तहत दोनों देशों की सेनाओं के बीच संचार और समन्वय बढ़ाया जाएगा.
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दोनों देशों के बीच होने जा रही 2+2 वार्ता कई मायनों में बेहद अहम है.
पहले ये वार्ता नौकरशाहों के बीच होती थी, लेकिन जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जून 2017 में अमरीका गए थे, तब सुझाव रखा गया था कि ये वार्ता विदेश मंत्री और रक्षा मंत्री के स्तर पर होनी चाहिए.
ऐसा दोनों देशों के बीच के संबंधों को राजनीतिक और रणनीतिक दिशा देने के लिए किया गया है.
भारत का ये ऐसा पहला 2+2 डायलॉग है. यही वजह है कि इस डायलॉग को बेहद अहम बताया जा रहा है.

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